कुछ दिनों पहले हमने एक नया टीवी ख़रीदा, तो पुराना बेचना पड़ा। जिसे बेचा उसे एक तय दिन टीवी लेने आना था। वो नहीं आया, तो हमें थोड़ा ग़ुस्सा आया। फिर जब वो अगले दिन भी नहीं आया, तो हमें ग़ुस्से के साथ थोड़ी बेचैनी भी हुई कि नया टीवी तो ले लिया, कहीं ख़रीदार आया ही न तो? शुक्र है, अगले दिन वो आया, और हमने बड़ी ख़ुशी और उत्साह से उसे टीवी दे दिया। लेकिन जैसे उसकी गाड़ी मेरे घर से दूर जाने लगी, मेरे दिल में एक कसक सी उठी। मैं सोचने लगा, "ये वही टीवी है जिसके आने से कभी हम कितने ख़ुश हुए थे। आज इसके जाने से ख़ुश हैं।" मानवीय भाव कितने अस्थिर होते हैं! प्रिय कब अप्रिय बन जाता है और अप्रिय कब प्रिय, कुछ नहीं कहा जा सकता।
"दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है"